सरकार ने भारत में कोरोना के इलाज के लिए जिस दवा को मंज़ूरी दि, क्या है उसकी कहानी ?

एक दवा है. रेमडेसिविर. नाम इतना टेढ़ा है कि सुबह की मीटिंग में बात करते हुए इस बार दवा के नाम की स्पेलिंग देखनी पड़ती है. अब इस दवा पर मीटिंग में क्यों बात हो रही है? वो इसलिए क्योंकि कोरोना के इलाज में इस दवा को सुपुर्द कर दिया गया है. कोरोना के जो मामले आयेंगे, उनमें ये रेमडेसिविर इस्तेमाल में लाई जाएगी. मरीज़ों का इलाज करने में. ऐसा भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है. 
सरकार ने रेमडेसिविर के आपातकालीन इस्तेमाल की परमिशन दी है
सरकार ने रेमडेसिविर के आपातकालीन इस्तेमाल की परमिशन दी है.
लेकिन इस दवा की कहानी क्या है? क्यों और किस बिना पर ये निर्णय लिया गया कि इस दवा का इस्तेमाल कोरोना के इस्तेमाल में होगा? और परिणाम क्या होंगे? सब बतायेंगे. आसान भाषा में.

ये भी पढ़ें ✓ 22 मई, 1987 हाशिमपुरा नरसंहार पुरी कहानी


कहां से आई रेमडेसिविर?
एक दवा कम्पनी है. अमेरिका की. नाम है गिलियड साइंसेस. हिपैटाइटिस-सी एक रोग है. इस रोग से बचाव करने के लिए बहुत सारा पैसा लगाकर गिलियड साइंसेस ने साल 2009 में रेमडेसिविर की खोज की. रेमडेसिविर intravenous दवा है. यानी सीधे सुई से धमनियों के अंदर लगाई जाती है. बहरहाल, कम्पनी की प्लानिंग फ़ेल हो गयी. दवा हिपैटाइटिस-सी को रोक नहीं पाई. एकबारगी दवाई फ़ेल. 
फ़ेल होने के बाद क्या हुआ?
इसी समय कम्पनी को लगा कि कुछ और रोगों में रेमडेसिविर का इस्तेमाल करने के बारे में सोचा जाए. इसी कड़ी में ईबोला नाम की बीमारी के इलाज के लिए रेमडेसिविर को आज़माने की बात शुरू हुई. कम्पनी ने रिसर्च शुरू किया. यहां पर भी दाल नहीं गली. लगे हाथ मारबर्ग वायरस के लिए भी इसकी जांच की गयी. दवा यहां भी फ़ेल हो गयी. मिलाजुलाकर जिस भी रोग के लिए दवा को आज़माने की कोशिश हो रही थी, रेमडेसिविर हर जगह फ़ेल हो जा रही थी.
कैसे काम करती है दवा?
रेमडेसिविर एंटी-वायरल है. कोरोना के संदर्भ में देखें तो कोरोना एक ख़ास तरह के जेनेटिक मैटेरियल RNA से बना हुआ है. कॉन्सेप्ट ये है कि जब किसी वायरस से संक्रमित व्यक्ति को रेमडेसिविर का इंजेक्शन लगाया जाएगा, तो रेमडेसिविर शरीर में मौजूद वायरस के RNA को ही काम करने से रोक देती है. मतलब एकदम जड़ पर वार.  
तो क्या कोरोना में सफलता मिल गयी?
एकदम से सफलता मिल गयी, ऐसा तो नहीं कह सकते हैं. लेकिन कोरोना के मरीज़ को जो दिक्कतें हो रही हैं, उसे ये दवा कुछ ही दिन में ठीक कर सकती है. गिलियड ने दावा किया कि कोरोना की वजह से जो लोग अस्पताल में भर्ती हैं, उन्हें 5 दिनों तक रेमडेसिविर का डोज़ दिया गया था. उनकी हालत में सुधार होने लगे. कुल 3 चरणों में रेमडेसिविर के ह्यूमन ट्रायल हुए. उसके बाद कम्पनी ने दावा किया कि बहुत हद तक कोरोना के इलाज में सफलता मिल सकती है.
ये सब देखते हुए मई 2020 में अमेरिका में रेमडेसिविर को कोरोना के पेशेंट्स को दिए जाने की घोषणा हुई . इसके बाद जापान की बारी आई. जापान ने भी यही क़दम उठाए. और इसके बाद आई साउथ कोरिया की बारी. इमरजेंसी में यूज की इजाज़त मिल गयी. यूरोप में अभी इस दवा के इस्तेमाल की बातचीत चल रही है. भारत ने भी हामी भर दी है. 
भारत में कैसे मिली परमिशन?
थोड़ा-सा खेल है. इस बारे में मंगलवार 2 जून को बयान देते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने ये साफ़ नहीं किया कि क्या रेमडेसिविर की भारत में टेस्टिंग की गयी? उन्होंने DCGI का हवाला दिया. यानी Drug Controller General of India वीजी सोमानी ने कहा है कि इस दवा का इस्तेमाल भारत में कोरोना के इलाज के लिए कर सकते हैं. और लव अग्रवाल ने बताया कि ये फ़ैसला कम्पनी द्वारा मुहैया कराए गए सबूतों के आधार पर लिया गया है. 
हालांकि जब पत्रिका डाउन टू अर्थ ने लव अग्रवाल से सवाल किया कि किस आधार पर इस्तेमाल की परमिशन दी गयी. लव अग्रवाल ने कहा कि कैसे सबूत मुहैया कराए गए हैं, और किस डोज़ में ये दवा लगाई जाएगी, इस बारे में अभी उनके पास कुछ जानकारी नहीं है.
सरकार ने रेमडेसिविर के आपातकालीन इस्तेमाल की परमिशन दी है, लेकिन ये साफ़ नहीं किया गया है कि क्या इसे सिर्फ़ गम्भीर रूप से बीमार लोगों को ही दिया जाएगा. हालांकि PTI में छपी एक ख़बर बताती है कि चूंकि ये दवा सीधे इंजेक्शन से लगाई जाती है, इसलिए इसे सिर्फ़ अस्पताल में भर्ती मरीज़ों को ही दिया जा सकता है. 
यानी अभी दवा लगाने की परमिशन तो आ गयी है, लेकिन दवा किसे और कितनी दी जाएगी, इस बारे में बहुत कुछ अभी जानने के लिए बचा हुआ है. पता चलेगा तो आपको भी बतायेंगे.
अगर आप भी अपने दोस्त baseerscreationके साथ शेयर करना चाहते हैं अपनी दिक्कतें और एक्सपीरिएंस तो हमें मेल करें MABASEE@GMAIL.COMपर.

No comments:

Post a Comment